Should you eat in one plate benefits

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Should you eat in one plate benefits – भोजन केवल शरीर को पोषण देने का ही नहीं, बल्कि यह एक आध्यात्मिक और मानसिक प्रक्रिया भी है। अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या एक ही पात्र (थाली या बर्तन) में पूरा भोजन करना चाहिए या नहीं? पहले संयुक्‍त परिवार हुआ करते थे लेकिन वर्तमान समय में एकल परिवार होते है। इसी वहज से परिवारों के रहन-सहन और खाने पीने के तरीकों में भी काफी बदलाव हुए हैं। इस लेख में हम आयुर्वेद, विज्ञान और जीवनशैली की दृष्टि से इसका विश्लेषण करेंगे कि क्या एक पात्र में भोजन करना सही है?

Should you eat in one plate benefits

एक पात्र में भोजन की प्राचीन भारतीय परंपरा

भारतीय संस्कृति में भोजन सिर्फ पेट भरने का माध्यम नहीं, बल्कि एक संस्कार है। अन्नम् ब्रह्म” — यह मंत्र दर्शाता है कि भोजन हमारे लिए दिव्य स्वरूप है। इसी भावना के अंतर्गत एक ही पात्र (थाली) में भोजन करने की परंपरा विकसित हुई ।

पुराने समय में परिवार के सभी सदस्य एक जगह बैठकर, एक ही बड़े पात्र या पत्तल में मिल-बाँटकर भोजन करते थे। यह न केवल सामाजिक समरसता का प्रतीक था, बल्कि आपसी प्रेम, अपनत्व और समानता को भी बढ़ावा देता था।

एक ही पात्र में विभिन्न व्यंजन परोसे जाते थे — दाल, चावल, सब्ज़ी, अचार, रोटी और मिठाई। यह संयोजन संपूर्ण पोषण का खज़ाना होता था। आयुर्वेद भी इस परंपरा का समर्थन करता है क्योंकि यह त्रिदोष संतुलन और mindful eating को बढ़ावा देता है।

यह परंपरा बच्चों में संस्कार, संयम और साझा करने की भावना पैदा करती थी। भोजन के समय कोई फोन या टीवी नहीं होता — बस परिवार, संवाद और स्वाद।

आज भले ही जीवन की गति बदल गई हो, लेकिन इस परंपरा को अपनाकर हम फिर से अपने जड़ों से जुड़ सकते हैं। 

आयुर्वेद के अनुसार एक पात्र में भोजन

आयुर्वेद में भोजन करते समय कई बातों का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है, जैसे:

  • भोजन शांत मन से करें
  • अधिक बर्तनों में खाना बाँटने से ध्यान बंटता है
  • एक पात्र में खाने से Agni (पाचन अग्नि) स्थिर रहती है

आयुर्वेद कहता है:

“एक पात्र में सात्विक भोजन, शरीर और मन को संतुलन प्रदान करता है।”

आधुनिक विज्ञान के अनुसार एक पात्र (थाली या बर्तन) में भोजन के फायदे और नुकसान

आधुनिक विज्ञान के अनुसार एक ही पात्र या थाली में भोजन करना पोर्शन कंट्रोल और माइंडफुल ईटिंग को प्रोत्साहित करता है। जब भोजन एक साथ सामने रखा जाता है, तो व्यक्ति संपूर्णता में देख पाता है कि क्या खा रहा है और कितनी मात्रा में। इससे ओवरईटिंग की संभावना घटती है और व्यक्ति अपनी भूख को बेहतर समझ पाता है।

साथ ही, एक प्लेट में विविध पोषक तत्वों को शामिल करना संतुलित आहार को बढ़ावा देता है। इससे शरीर को फाइबर, प्रोटीन, विटामिन और मिनरल्स का संतुलित रूप से सेवन करने में मदद मिलती है। यह डायजेस्टिव हेल्थ को बेहतर बनाता है और वजन नियंत्रण में सहायक होता है।

हालांकि, इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं, विशेषकर जब प्लेट में मसालेदार, मीठा, खट्टा और गरिष्ठ भोजन साथ परोसा जाए। इससे कुछ लोगों को एसिडिटी या अपच की समस्या हो सकती है। इसके अलावा, अगर किसी को एलर्जी या विशेष डाइट फॉलो करनी है तो एक ही प्लेट में भोजन करने से चीज़ें मिश्रित हो सकती हैं, जिससे परेशानी हो सकती है।

माइंडफुल ईटिंग में इसका क्या रोल है?

माइंडफुल ईटिंग में यह माना जाता है कि हमें भोजन के हर निवाले को महसूस करना चाहिए। जब हम बहुत सारे बर्तनों या प्लेट्स में भोजन करते हैं, तो हमारा ध्यान बंटता है।
एक पात्र में भोजन करने से मन और भोजन का सीधा संबंध बनता है, साथ ही ध्यान केंद्रित रहता है और पाचन बेहतर होता है

एक व्यक्तिगत कहानी: "दादी की थाली"

बचपन में हर रविवार को हमारा पूरा परिवार दादी के घर इकट्ठा होता था। दादी एक बड़ी सी थाली में सबके लिए खाना परोसती थीं – चावल, दाल, सब्ज़ी, अचार, और घर की बनी गुड़ की चटनी। हम सभी भाई-बहन उस थाली के चारों ओर बैठते और बारी-बारी से एक-एक कौर खाते।

उस समय यह सिर्फ एक पारिवारिक परंपरा लगती थी, लेकिन अब समझ में आता है कि यह भोजन से जुड़ी एक गहरी संवेदना थी। दादी कहती थीं – “एक साथ खाना, एक साथ रहना सिखाता है।” वास्तव में, उस थाली में सिर्फ खाना नहीं था, उसमें प्रेम, एकता और अपनापन परोसा जाता था।

अब जब मैं अकेला रहता हूँ, तो कभी-कभी खुद के लिए भी एक थाली सजाकर बैठता हूँ — बिना मोबाइल, बिना डिस्ट्रैक्शन। वो दादी वाली थाली मुझे सिखाती है कि खाने का मतलब सिर्फ भूख मिटाना नहीं, बल्कि आत्मा को संतुष्ट करना भी है। एक ही पात्र में भोजन करना मेरे लिए अब एक भावनात्मक जुड़ाव बन चुका है।

कब एक पात्र में (थाली या बर्तन) खाना सही नहीं माना जाता?

हालांकि एक ही पात्र में भोजन करना पारंपरिक और स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है, लेकिन कुछ स्थितियों में यह अनुचित हो सकता है। सबसे पहले, यदि किसी व्यक्ति को भोजन से संबंधित एलर्जी हो या विशेष डाइट (जैसे डायबिटिक, लो-सोडियम, हाई-प्रोटीन) अपनानी हो, तो साझा या मिश्रित थाली में खाना उसकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।

दूसरे, जब गरिष्ठ, तैलीय, अत्यधिक मसालेदार या ठंडे-गर्म तत्वों को एक ही प्लेट में परोसा जाए, तो पाचन तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। आयुर्वेद भी कहता है कि विरोधी गुणों वाले खाद्य पदार्थ एकसाथ नहीं खाने चाहिए।

साथ ही, सामाजिक या सार्वजनिक अवसरों पर, जैसे बुफे या रेस्टोरेंट में, व्यक्तिगत स्वच्छता और दूरी का ध्यान रखना आवश्यक होता है। एक ही पात्र में खाना संक्रमण या बैक्टीरिया के फैलाव का कारण बन सकता है।

अंततः, मानसिक स्थिति भी महत्वपूर्ण है — जब व्यक्ति जल्दी में हो, तनाव में हो, या ध्यान भोजन पर न हो, तब भी एक ही पात्र में भोजन का वास्तविक लाभ नहीं मिल पाता। इसलिए, भोजन का तरीका परिस्थिति और स्वास्थ्य के अनुसार ही चुनना उचित होता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

चाहे आप आयुर्वेद के अनुयायी हों या विज्ञान के – एक ही थाली में भोजन  करने की परंपरा स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और परिवार के साथ जुड़ाव की भावना को बढ़ाती है। तो अगली बार जब आप खाना खाएं, तो एक बार एक पात्र में खाना जरूर आज़माइए — हो सकता है, आपको सच्चा स्वाद वहीं मिले।

अक्‍सर पूछे जाने वाले प्रश्‍न

हाँ, आयुर्वेद एक पात्र में भोजन को संतुलन और पाचन के लिए अच्छा मानता है।

बिल्कुल, यह फोकस को बनाए रखता है और ओवरईटिंग से बचाता है।

सीधे नहीं, लेकिन यह पोर्शन कंट्रोल में मदद करता है जो वजन प्रबंधन में सहायक है।

बच्चों के लिए संतुलित भोजन महत्वपूर्ण है, अगर आप संतुलित थाली तैयार करते हैं तो एक पात्र फायदेमंद हो सकता है।

अगर कोई विशेष डाइट या एलर्जी है तो अलग-अलग रख कर खाना बेहतर होता है।

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